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Wednesday, July 8, 2009

आज दिल भर आया...!!!

"It is said that Full Moons are traditionally associated with temporal insomnia, insanity (hence the terms lunacy and lunatic) and various "magical phenomena" such as lycanthropy Out of this phenomena, poured my heart out last night :) This "Hay" Moon of July has arrived like unforgettable blessing!"




पूरे चाँद को देख कर लगा, कोई दिल में आया !
वो इत्नी मोहब्बत से मिला, कि दिल भर आया !!

उन्का ख़्याल तो, हवा का झोंका बन कर आया !
अपनी तो कहानी थी, और उन्का दिल भर आया !!

कहते हैं, ऐसा फ़रिश्ता कभी ज़मीं पे नहीं आया !
उन्की बेवक्त कज़ा कि ख़बर सुन, दिल भर आया !!

आज हमसे, अपना आईना भी मिलने आया !
जिसकी प्यार भरी बाँहों में, दिल भर आया !!

क्यूँ किसी के, रात भर जलने का दिन है आया !
शम्मा को देख कर परवाने का, दिल भर आया !!

माज़ी आज अपने साथ, यह कहाँ ले आया !
ज़िंदगी के सफ्हे पलट कर, दिल भर आया !!

वो अपने साथ, बरसात का मौसम भी ले आया !
खुदा
को आँसू बहाता देख, आज दिल भर आया !!


!~अमित~!
:~}

Sunday, March 1, 2009

Yeh Hai Dallas Meri Jaan...!!!


2 years, 2 days and 2 hours of my past life have been spent in a place nicknamed as "Big D". Yes, this is the Big Apple of the South West! Yeh Hai Dallas Meri Jaan...is about a ghazal penned in past few days of being nostalgic about Dallas.......!!!

"A City,
where i have spent endless beautiful moments of solitude, where learnt some of most important lessons of my life, lost and found above all emotions as well, where realization of time became a important revelation, where created sailboats for upcoming storms, where rewriting the maktub become an intrinsic part, where someone somewhere someone special would be a part of my life:-)!"

कितनी रातें तन्हा गुज़ारी हैं, इसके साथ,
काश आप साथ होते, तो क्या बात होती !

कुछ पाया भी, कुछ खोया भी, जाहाँ में इसके साथ,
नए मोड़ से शुरू होती ज़िन्दगी, तो क्या बात होती!

कैसे लोग और कैसे हादसे मिले, इसके साथ,
कभी किसी से कह पाते, तो क्या बात होती!

सोचा था वो भी मिलेंगे कभी, दिल्लगी से इसके साथ,
वक्त से पहले उनसे मुलाक़ात होती, तो क्या बात होती!


अश्कों का सागर भी पार किया है, इसके साथ,
हमें तूफां की ख़बर होती, तो क्या बात होती!

हाथों की लकीरें भी चली हैं, इसकी राहों के साथ,
ख़ुद को बाँट डालता हर कोने में, तो क्या बात होती!

जाने अब, "इसका साथ" कब तक निभाना पड़ेगा,
कर दिया होता तेरे हवाले, तो क्या बात होती!!

!~Amit~!

Thursday, February 19, 2009

Fragrance of Deep Meditation!




"The man who has moved into his being has moved beyond time. Time exists with the body, with the mind, with the heart, but with the being there is no time. You suddenly experience timelessness -- or you can call it eternity. It is only in that state when you have transcended mind, transcended time, that you are pure and free. For the first time you know what purity is. It is not something to be cultivated; it is something like a fragrance of deep meditation. The joy, the song, the celebration that arises out of silence, the sound of soundless silence -- that is purity, that is innocence; you have become a child again. And that is maturity too, that is growth. You have come of age. You are really born, you are born anew!"

!~Osho~!

Wednesday, February 4, 2009

क्या बात है....!



A month, four days and 3 nights have already passed this year and time seems to be fizzling out of one's hand like sand. Every now and then, one crosses different paths in his or her life and realizes how they could be intertwined with some past moments. To express the mixed emotions arising out of this experience, is a following poetic attempt. Hopefully you'll will enjoy reading it!


क्या
बात है, जो आज उन्की आंखों में आँसू गए,
किस तरह बताएं तुम्हें, की यादों के आल्म गए !

जाने क्यूँ , उन गलियों को छोड़ कर हम गए,
उनको दोबारा पुकार सकें, ऐसे मौसम गए !

हमारी बातों में, आज फिर किसी के किस्से गए,
वो हमारा, किसी का रहा, ऐसे ज़माने गए !

अब चाहें भी तो, ऐसे इम्तिहाँ गए,
ख़ुद की तनहाई में, जीने के बहाने गए !

शम्मा के रात भर, जलने के दिन गए,
फिर
उनकी चाहत में, ऐसे परवाने गए !

मुझको याद नहीं कैसे, वो इतने करीब गए,
जिनका ज़िक्र भी नहीं होता,
उनके ख़याल गए !

आप जाने, किस मोड़ पर हमसे मिलने गए,
एक नज़र ही उनकी हम पे रहे, फिर ऐसे मंज़र गए !!

!~
अमित~!

Saturday, June 21, 2008

तुम्हें दिल्लगी...!!!!


"तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी".......Listening to Nusrat's soulful recitation of sufi poetry leaves a lasting spiritual experience. Time magazine proclaimed his voice as a "conduit to heaven". Unfortunately, his heart gave out at 48, depriving humanity of one of its greatest voices. This Qawwali for past few days, inspired me to express my gratitude & dedication to this phenomenon...huh..never got a chance to experience it first hand!

उनसे सुनते हैं, तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी,
अब मोहब्बत की राह पे, नज़र बिछानी पड़ेगी!

कैसे छुपाओगे इन अश्कों को, अपने गीले दामन में,
किसी को तो, इस बरसात की कहानी सुनानी पड़ेगी!

उनके ख़यालो से, इन दिनों, दिल की शम्मा रोशन है,
कभी-न-कभी, यह चाहत बेतक़ल्लुफ़ जतानी पड़ेगी!

इन साँसों में अब, उसकी वफ़ा की महक आती है,
वो चाहे मानें न मानें, उसकी मर्ज़ी तो माननी पड़ेगी!

अब तक क्यूँ रखा है, परदा अपने चाहने वालों से,
किसी दिन तो, उफ्त्गी से झलक दिखलानी पड़ेगी!

जितना सताया है ख़ुद को, उसकी इबादत में,
इस पशेमाँ को फिर नज़र झुकानी पड़ेगी!

हर ज़ख्म का सुना है, मरहम भी होता है,
कब तक दरिया-ऐ-आग में उल्फत छुपानी पड़ेगी!!

!~ अमित ~!

Tuesday, December 11, 2007

किस किस को सुनाएं....!!!

Thanks for the all the comments, for my last Ghazal. Here's, probably, the last one of this year!

किस किस को सुनाएं......!!!

ख़ुद कि ज़िंदगी के किस्से, किस किस को सुनाएं,
अज्नबियों कि महफिल में, क्यों रुसवाई करवाएं!

नए ख्वाब, अब शायद, नयी कहानियाँ दिखलायें,
कोई बताये, अब किस पत्थर पे जा के सर झुकायें!

नयी राहें, नयी मंजिल, चाहे कहीं भी ले जाएँ,
डरता हूँ, कहीं उन्से दोबारा नज़रें न मिल जाएँ!

वक़्त कि करवटें, कहीं फिर, हाथ से छूट न जाएँ,
काश यूं भी होता, हाथ कि लकीरें फिर से लिख्वाएं!

इंतज़ार के किनारे न जाने, किस किस से मिलावाएं,
पशेमां रूह कि अस्तियाँ, अब किधर जाके जलायें!

दिल कि धड़कनें अब तक, आपको आवाज़ लगाएं,
उसकी मर्ज़ियों कि ज़िंदगी, कब तक जीते जाएँ!

फ़साना सुननेवालों को, ज़ख्म क्यों दिखलायें,
इत्ने नादां नहीं, कि उनकी याद से अपना दामन जलायें!!

!*अमित*!

Friday, August 31, 2007

.......सिर्फ़ मुक़द्दर है !!!

Maktub is an alchemist term (arabic word) which literally means "it is written". From mystical point of view, it points to the fact that whatever happens is already known to the One. It signifies that Destiny exists. It points finger to the fact that everything is already known to God. Based upon same thought & experiences in the past six months, have written something after a long time.....


.......सिर्फ़ मुक़द्दर है !!!

अपने पानी में पिघ़ल जाना बर्फ़ का मुक़द्दर है,
किसकी ज़िंदगी में ख़ुद का होना , सिर्फ़ मुक़द्दर है!

कोई
रौशनी में जागे, और किसी का आग में जलना,
पर श़म्मा का रात भर जलना , सिर्फ़ मुक़द्दर है!

बहते पानी की रफ़्तार को असां नही , रोक पाना ,
आँखों में अश्क छुपा लेना , सिर्फ़ मुक़द्दर है!

उन्हों ने कहा , इक सांस में , इक साल भुला देना ,
दिल में उनकी यादें बिठा लेना , सिर्फ़ मुक़द्दर है!

उनके हर जवाब में इंशाल्लाह का ज़िक्र होना ,
सोचना क्यों अपना अंजाम -ए -उल्फत , सिर्फ़ मुक़द्दर है!

अपने साये को निहारने की आदत सी हो जाना ,
ख़ुद की तन्हा़ई से दोस्ती कर लेना , सिर्फ़ मुक़द्दर है!

किसी कि खा़मोशी , असां नही समझ पाना ,
इक अधूरी सी मुलाक़ात का तस्स्वुर , सिर्फ़ मुक़द्दर है!!

!*अमित*!