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Tuesday, December 11, 2007

किस किस को सुनाएं....!!!

Thanks for the all the comments, for my last Ghazal. Here's, probably, the last one of this year!

किस किस को सुनाएं......!!!

ख़ुद कि ज़िंदगी के किस्से, किस किस को सुनाएं,
अज्नबियों कि महफिल में, क्यों रुसवाई करवाएं!

नए ख्वाब, अब शायद, नयी कहानियाँ दिखलायें,
कोई बताये, अब किस पत्थर पे जा के सर झुकायें!

नयी राहें, नयी मंजिल, चाहे कहीं भी ले जाएँ,
डरता हूँ, कहीं उन्से दोबारा नज़रें न मिल जाएँ!

वक़्त कि करवटें, कहीं फिर, हाथ से छूट न जाएँ,
काश यूं भी होता, हाथ कि लकीरें फिर से लिख्वाएं!

इंतज़ार के किनारे न जाने, किस किस से मिलावाएं,
पशेमां रूह कि अस्तियाँ, अब किधर जाके जलायें!

दिल कि धड़कनें अब तक, आपको आवाज़ लगाएं,
उसकी मर्ज़ियों कि ज़िंदगी, कब तक जीते जाएँ!

फ़साना सुननेवालों को, ज़ख्म क्यों दिखलायें,
इत्ने नादां नहीं, कि उनकी याद से अपना दामन जलायें!!

!*अमित*!

Friday, August 31, 2007

.......सिर्फ़ मुक़द्दर है !!!

Maktub is an alchemist term (arabic word) which literally means "it is written". From mystical point of view, it points to the fact that whatever happens is already known to the One. It signifies that Destiny exists. It points finger to the fact that everything is already known to God. Based upon same thought & experiences in the past six months, have written something after a long time.....


.......सिर्फ़ मुक़द्दर है !!!

अपने पानी में पिघ़ल जाना बर्फ़ का मुक़द्दर है,
किसकी ज़िंदगी में ख़ुद का होना , सिर्फ़ मुक़द्दर है!

कोई
रौशनी में जागे, और किसी का आग में जलना,
पर श़म्मा का रात भर जलना , सिर्फ़ मुक़द्दर है!

बहते पानी की रफ़्तार को असां नही , रोक पाना ,
आँखों में अश्क छुपा लेना , सिर्फ़ मुक़द्दर है!

उन्हों ने कहा , इक सांस में , इक साल भुला देना ,
दिल में उनकी यादें बिठा लेना , सिर्फ़ मुक़द्दर है!

उनके हर जवाब में इंशाल्लाह का ज़िक्र होना ,
सोचना क्यों अपना अंजाम -ए -उल्फत , सिर्फ़ मुक़द्दर है!

अपने साये को निहारने की आदत सी हो जाना ,
ख़ुद की तन्हा़ई से दोस्ती कर लेना , सिर्फ़ मुक़द्दर है!

किसी कि खा़मोशी , असां नही समझ पाना ,
इक अधूरी सी मुलाक़ात का तस्स्वुर , सिर्फ़ मुक़द्दर है!!

!*अमित*!