"तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी".......Listening to Nusrat's soulful recitation of sufi poetry leaves a lasting spiritual experience. Time magazine proclaimed his voice as a "conduit to heaven". Unfortunately, his heart gave out at 48, depriving humanity of one of its greatest voices. This Qawwali for past few days, inspired me to express my gratitude & dedication to this phenomenon...huh..never got a chance to experience it first hand!
उनसे सुनते हैं, तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी,
अब मोहब्बत की राह पे, नज़र बिछानी पड़ेगी!
कैसे छुपाओगे इन अश्कों को, अपने गीले दामन में,
किसी को तो, इस बरसात की कहानी सुनानी पड़ेगी!
उनके ख़यालो से, इन दिनों, दिल की शम्मा रोशन है,
कभी-न-कभी, यह चाहत बेतक़ल्लुफ़ जतानी पड़ेगी!
इन साँसों में अब, उसकी वफ़ा की महक आती है,
वो चाहे मानें न मानें, उसकी मर्ज़ी तो माननी पड़ेगी!
अब तक क्यूँ रखा है, परदा अपने चाहने वालों से,
किसी दिन तो, उफ्त्गी से झलक दिखलानी पड़ेगी!
जितना सताया है ख़ुद को, उसकी इबादत में,
इस पशेमाँ को फिर नज़र झुकानी पड़ेगी!
हर ज़ख्म का सुना है, मरहम भी होता है,
कब तक दरिया-ऐ-आग में उल्फत छुपानी पड़ेगी!!
!~ अमित ~!
2 comments:
Hi Amit,
I believe that I understood what you said, but I am not sure what I heard is what you meant!
:) Anyway... it's been a while since your last one (6 months?) - I believe work has been keeping you busy.
-Vinod
Good One again... Keep going
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