.......सिर्फ़ मुक़द्दर है !!!
अपने पानी में पिघ़ल जाना बर्फ़ का मुक़द्दर है,
किसकी ज़िंदगी में ख़ुद का होना , सिर्फ़ मुक़द्दर है!
कोई रौशनी में जागे, और किसी का आग में जलना,
पर श़म्मा का रात भर जलना , सिर्फ़ मुक़द्दर है!
बहते पानी की रफ़्तार को असां नही , रोक पाना ,
आँखों में अश्क छुपा लेना , सिर्फ़ मुक़द्दर है!
उन्हों ने कहा , इक सांस में , इक साल भुला देना ,
दिल में उनकी यादें बिठा लेना , सिर्फ़ मुक़द्दर है!
उनके हर जवाब में इंशाल्लाह का ज़िक्र होना ,
सोचना क्यों अपना अंजाम -ए -उल्फत , सिर्फ़ मुक़द्दर है!
अपने साये को निहारने की आदत सी हो जाना ,
ख़ुद की तन्हा़ई से दोस्ती कर लेना , सिर्फ़ मुक़द्दर है!
किसी कि खा़मोशी , असां नही समझ पाना ,
इक अधूरी सी मुलाक़ात का तस्स्वुर , सिर्फ़ मुक़द्दर है!!
!*अमित*!
5 comments:
kya khoob likha hai...thought i'd be the first to leave a comment on your blog.
upload your other works too.....
btw correct your name spelling at the end of the ghazal.
Congrats for the wonderful ghazal and launch of the much-awaited blog. Keep rocking. Maktub is happening!!!
kya dard bhari ghazal likhi hai..aur peeche barf ki photo lagayi hai? mail mein likha 22nd ghazal...yahan to ek hee hai..did i miss any pages??
Even i seem to have missed the precious 21. BTw great to see Punit and Sudeep here...Keep writing and POSTING
Hey amit, great work buddy.Just would like to say ,you are not just good with words but with expressing them also.You have put all your feelings in such a awesome way and i must say. marvelous job................Keep it up.Your ghazal reminds of Pankaj udhas ghazals .
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